कमाया है ये सालों में, यही हासिल है बस मेरा,
ये मेरे दोस्त, मेरे हमदम मेरे साथी मेरे अपने,
लगी ठोकर हज़ारों बार, पर जब भी लडखडाया मैं,
कहीं से आ पहुँचते थे सहारे को मेरे अपने,
अहम में चूर कितनी बार, इन्हें कितना सताया था,
हंस कर माफ करते थे हर इक गलती मेरे अपने,
हजारों ग़म हो चाहे, मुझको ना परवाह अब कोई,
कड़ी हर धूप में, बन जायेंगे साया मेरे अपने,
संभालूँगा मैं इनको, और मुझे अब वो संभालेंगे,
ये ही दुनिया है बस मेरी, इक मैं और मेरे अपने |
- योगेश शर्मा
bahut sundar
जवाब देंहटाएंshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
Aabhaar,Shekhar ji
जवाब देंहटाएंbahut sundar Yogesh ji...
जवाब देंहटाएंkuch meri taraf se...
kisi thandi thithurti raat me ja so chuka hunga...
thodi si aanch de mujhko jalayenge mere apne....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
दिलीप जी इतनी शानदार अभिव्यक्ती....दिल खुश हो गया ..ये लाईने आपकी ...राहत देने की बात भी करती हैं और चिता को अग्नि देने की भी ...बहुत ही बढ़िया ....अफ़सोस इसी बात का है कि मैं आप की इस कृति को जोड़ नहीं सकता अपनी कविता में...पर आपकी यह लाईनें अपने आप में पूरी कविता है |
जवाब देंहटाएंसंभालूँगा मैं इनको, और मुझे अब वो संभालेंगे,
जवाब देंहटाएंये ही दुनिया है बस मेरी, इक मैं और मेरे अपने |
अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....