थोड़ी संस्कृति,
थोड़ी विकृति,
ईश्वर की कृति,
है आकृति, मनुष्य की
लालसाएं उन्मुक्त,
कामनाएं अतृप्त,
चाटुकारी छलके,
और घृणा गुप्त,
है आकृति, मनुष्य की
भक्ति ब्रह्म से,
प्रेम स्वयं से,
पीड़ित अहम् से,
रहस्मयी प्रकृति,
है आकृति, मनुष्य की
- योगेश शर्मा
aapki kalam ko padhna hamesha sarthak hota hai...yathartha ko saamne rakha hai...
जवाब देंहटाएंउम्दा संयोजन!
जवाब देंहटाएंबढिया अभिव्यक्ति।
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