26 अप्रैल 2010

'फ़लक से वो फ़रिश्ता आज गिर गया'





कल  तक  जो  क़ायनात  की  रहबरी   में  था,
फ़लक  से   वो  फ़रिश्ता,  आज   गिर  गया,

मुझको नहीं  पता, आखिर हुआ ये  कैसे,  
मेरी  नज़र  से  मेरा,  हमराज़  गिर  गया,

पेशानी पे सजा जो चमकता था हरदम ,
उम्मीद  का  सुनहरी,  वो  ताज  गिर  गया

अश्कों से कल तलक हमेशा नम रहे थे ,
उन  कन्धों  से जाने मेरा  कब हाथ  गिर गया

हौले  से  दिल  के  हमने,  खींचें  थे  महज़  तार
क्यों  टूट कर  मोहब्बत  का,  साज़ गिर  गया

कितने ही ज़हर पीकर, जो कभी न लड़खड़ाया,  
बिन पिए जाने कैसे, कल रात  गिर गया

आइने तक से अब वो, नज़रे नहीं मिलाता
नज़रों से अपनी इतना, वो आज गिर गया

इतना है बदगुमाँ, कि चेहरा छुपाये बैठा,
शायद वो अपनेपन का नकाब गिर गया |


- योगेश शर्मा

5 टिप्‍पणियां:

  1. wah pahli baar padha aapko...bahut acchha likhte hai...dil ko jhakjhor dene wale jazbat. badhayi.

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  2. अनामिका जी, हौसला आफज़ायी का बहुत बहुत शुक्रिया

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  3. yogesh ji waise to hindi ke protsahan ke liye har ek kavita padhta hun...par aap un kaviyon me se hain jinka mujhe hamesha inezar rehta hai...aap kabhi kavya pipasa ko badhne nahi dete...aaj bhi pyaas bujhi...bahut achcha...

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  4. दिलीप जी बहुत आभार | पूरी कोशिश करूंगा की आप की उम्मीदों पर और अपनी कसौटी पर पूरा उतरता रहूँ ...लगातार

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