हर रोज़ ये सुबह पूरब से,
पश्चिम को करवट लेती है,
अपना ही सूरज पूरब में,
जो ढलता है तो ढलने दो
सालों से मिट्टी की खुशबू,
बस यादों में ही बाकी है,
साँसों का दम धुएं में,
ग़र घुटता है तो घुटने दो
रंगों की इतनी बेहतर,
कहाँ रोज़ नुमाइश होती है,
आस्मां मे भरने को रंग,
घर जलता हैं तो जलने दो
सिखाएगा डसने का हुनर,
आखिर कुछ काम ही आयेगा,
आस्तीनों में,कोई सांप अगर,
जो पलता है, तो पलने दो |
- योगेश शर्मा
सिखाएगा डसने का हुनर,
जवाब देंहटाएंआखिर कुछ काम ही आयेगा,
अब तो डसने का हुनर भी आना ही चाहिये
रंगों की इतनी बेहतर,
जवाब देंहटाएंकहाँ रोज़ नुमाइश होती है,
आस्मां मे भरने को रंग,
घर जलता हैं तो जलने दो
aapki lekhni ke saamne sar jhuk gaya...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
दिलीप भाई ये आपके लिये है ताज़ी ताज़ी :
जवाब देंहटाएं'आज के इस दौर में,ऐसा तो होता है कम ,
अपनी तकलीफों के सिवा भी दिखें दुनिया के ग़म
निकाल फुर्सत,मेरे शब्दों पर निगाहें फेर दीं
है आपकी ज़र्रानवाज़ी,कहाँ इस काबिल थे हम'
BAHUT KHUB
जवाब देंहटाएंBADHAI IS KE LIYE AAP KO
SHEKHAR KUMAWAT