तुम आये ,
यादों की बदरी संग लाये,
तुम आये....
अपनी झोली में कुछ बादल ,
मैं भी सहेज के बैठा था,
पानी उनका सूखा सूखा लगता था,
जैसे ही सामने तुम आये
बादल से बादल टकराए ,
बरसीं फिर बातों की झड़िया,
खूब मिली कड़ियों से कड़ियाँ,
और खुली किस्सों की गठरी,
जो तुम लाये,
तुम आये, यादों की बदरी संग लाये...
मैंने तुमको दिखलाने को,
जाने कब से रखी थी,
हर रंग, छटा और आभा की,
कलियाँ चुन के रखी थी,
मिलने के आस के पानी से,
इसको नम - नम सा रखा था,
कितने ही बीते लम्हों को,
इनकी कैद में रखा था,
चटकी कलियों की पंखुरियां,
जब तुम आये,
तुम आये, यादों की बदरी संग लाये
कुछ रंग, मेरी बातों से निकल,
ह्रदय तुम्हारे को, रंग कर
आँखों के रस्ते से हो कर ,
चेहरे को तुम्हारे कुछ धो कर ,
गुज़रे, और आकर बैठ गए ,
मेरी आँखों के कोनों में,
बहने को मेरे गालों तक
कहने को, इतने सालों तक,
आखिर तुम क्यों न आये,
तुम आये, यादों की बदरी संग लाये,
तुम आये .......
वाह .. बहुत बढिया !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
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