थोड़ा नाराज़ सा, थोड़ा हैरां क्यों है?
दर्द, तू मुझे देख के परेशां क्यों है?
दर्द, तू मुझे देख के परेशां क्यों है?
इक रोज़ दबे पाँव तू ज़िन्दगी में आया,
हौले से मेरी साँसों में, नस-नस में समाया,
दम घोटने को मेरा शिकंजा तेरा गड़ा,
दम घोटने को मेरा शिकंजा तेरा गड़ा,
मैंने जितनी दुआ करी उतना ही तू बढ़ा,
डरा-डरा सा तुझसे मैं भागता रहा,
रातें करवटों में ही काटता रहा,
कुछ देर को कराहा कुछ रोज़ बहुत तड़पा ,
कुछ देर को कराहा कुछ रोज़ बहुत तड़पा ,
ये देख तूने कैसे, सुख चैन मेरा हड़पा,
तभी एक ख़याल से राहत बहुत मिली
सच्चाई एक बड़ी मेरे सामने खुली,
कि गैर होके भी, तू मुझे कितना चाहता है,
मेरी जिंदगी पे काबू करना चाहता है,
पर जिंदगी है मेरी, हक़ इसपे बस मेरा है,
हँसना है या रोना ये फैसला मेरा है
तब से हमेशा खुश हूँ,लगाता हूँ कहकहे,
सैलाब तेरे कितने आये चले गए,
कर कोशिशें तू जितनी, हँसता ही मैं मिलूंगा,
जितना भी तू गिरा ले, उठ कर के फिर चलूँगा,
मुझको नहीं शिकायत, न कोई गिला है तुझसे,
है शुक्रिया के तूने, मुझको मिलाया मुझसे,
मैं दोस्त अब रहा न, ये समझता क्यों है?
दर्द, तू मुझे देख के परेशां क्यों है?
- योगेश शर्मा
waah dard par jeet...bahut achche sir...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , दर्द तू मुझे देख कर .....एक विचार का जन्म और फिर उसकी सकारात्मकता की ओर की यात्रा ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंकिसी के लिए दर्द ही दोस्त है जो हर पल साथ है.. आपकी कविता भी सकारात्मक सन्देश देती हुई प्रभाव छोड़ती है...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता है
जवाब देंहटाएंlajawab rachna
जवाब देंहटाएंदर्द, तू मुझे देख के परेशां क्यों है? .....
जवाब देंहटाएंbahut achchha likha hai Bhaisa