काटी है रात आज भी,
कल रात की तरह,
निकला न चाँद आज भी,
कल रात की तरह,
जाने कहाँ छुपा है,
जाने गया किधर,
चला तो था,खबर है,
आया नहीं इधर,
फेरी है नज़र उसने,
मेरे हालात की तरह,
निकला न चाँद आज भी,
कल रात की तरह,
ग्रहण लगा उसे है,
कि फ़लक ने छुपा लिया,
या बादलों ने उसको,
पलक में छुपा लिया,
जो भी हुआ, हुआ है,
किसी करामात की तरह,
निकला न चाँद आज भी, ,
कल रात की तरह,
मुमकिन है चाँदनी ये
न मेरे वास्ते हो,
जुदा मेरे आस्मां से,
अब उसके रास्ते हों,
है दर्द ये कबूल,
किसी सौगात की तरह,
निकला न चाँद आज भी,
कल रात की तरह
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
सुना है उसने अब तो
न आने की कसम खाई
हमने भी हार कर
नज़र में चांदनी उगाई
दिल का आसमां सजा
बारात की तरह
निकले न चाँद चाहे अब
हर रात की तरह
बहुत मनमोहक कविता !
जवाब देंहटाएंaache bhao....aacha laga pad ke
जवाब देंहटाएंwaah bahut khoob sirji...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
क़ाश मै भी इतनी शानदार कविता लिख पाता ...फिर भी लिखी है चन्द लाइन..
जवाब देंहटाएंकाटी है रात आज भी,
कल रात की तरह,
आज भी काट रहे है मस्किटो ,
कल रात की तरह,क्युकि
निकला न चाँद आज भी,
कल रात की तरह
shubhkamnaye hamari bhi aap ko
जवाब देंहटाएंshekhar kumawta
http://kavyawani.blogspot.com/\
राजीव जी बहुत बढ़िया लिखा | वैसे जान कर ख़ुशी हुई कि आप भी लखनऊ से ही हैं| लगता है बिजली की समस्या के साथ लखनऊ में मच्छर समस्या भी शुरू हो गई है |आभार
जवाब देंहटाएं