( पुनः संपादित व प्रकाशित )
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क्या लिखूं? ये सोचकर परेशान हूँ,
क्या लिखूं? आज फिर से हैरान हूँ,
क्या लिखूं, फूल, बारिश, चाँद, तारे?
क्या लिखूं, खाली पेट, लम्बी होती कतारें?
क्या लिखूं, ज़ुल्फ़, आँखें, होंठ...मोहब्बत के वादे ?
क्या लिखूं, साथ जीने - मरने के इरादे?
क्या लिखूं, मज़हब पे मरती, इंसानी नस्लें?
क्या लिखूं, रोज़ बड़ते खर्चों के मसले?
क्या लिखूं, पैसे, वफ़ा, दोस्ती की बातें?
क्या लिखूं, बेमतलब से होते रिश्ते नाते?
क्या लिखूं , दिनों की चुगली, रातों के किस्से?
क्या लिखूं, सब यही, ज़िन्दगी के हिस्से?
क्या लिखूं? और लिखना, कोई जरूरी तो नहीं,
दिल के गुबार, अखबार बनें, कोई जरूरी तो नहीं,
लेकिन करूं कोशिश, तो शायद कुछ बदल पाए,
जाने कब, कुछ पढ़ के, कोई पत्थर पिघल जाए,
है अगर माना यही, तो क्यों हैरान हूँ?
क्या लिखूं? ये सोच कर क्यों परेशान हूँ |
- योगेश शर्मा
ज़बरदस्त...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना
Shukriya mere bichde bhai....
जवाब देंहटाएंvery Good....
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंbahut khoob sirji...
जवाब देंहटाएंइतना अच्छा लिखकर कहते हो क्या लिखू ? .....अच्छी रचना
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