06 मई 2010

'क्या इलज़ाम दें शैतान को'













दुनिया के मिट जाने का क्या,
इलज़ाम दें शैतान को,
जब ख़त्म करने में लगा,
इंसान ही इंसान को,

हर तरफ बस शोर है,
मातम है, छाया है धुआं,
कितनी जल्दी है पड़ी,
मरने की हर इंसान को,

भूख,  महेंगाई, तरक्की ,
हवस दौलत और नशा,
जरूरतें पैदा करी ख़ुद,
दोष दें भगवान को,

ख्वाहिशों के सब्ज़ जंगल,
रह जायेंगे पीछें यही,
जेब तक न होगी, कफ़न में,
पहुंचेंगे जब अंजाम को |

-  योगेश शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

  1. दुनिया के मिट जाने का क्या,
    इलज़ाम दें शैतान को,
    जब ख़त्म करने लगा,
    इंसान ही इंसान को,

    सटीक...और बेहद प्रासंगिक रचना है...

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  2. हर तरफ बस शोर है,
    मातम है, छाया है धुआं,
    कितनी जल्दी है पड़ी,
    मरने की हर इंसान को


    बेहतरीन....

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  3. भूख, महेंगाई, तरक्की ,
    हवस दौलत और नशा,
    जरूरतें पैदा करी ख़ुद,
    दोष दें भगवान को,
    sir hamara hi sach hamare samne rakh diya...bahut hi achchi rachna

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  4. हर तरफ बस शोर है,
    मातम है, छाया है धुआं,
    कितनी जल्दी है पड़ी,
    मरने की हर इंसान को

    पहली बार यात्रा की आपके ब्लॉग की .....बहुत ख़ुशी हुई .....साथ में अफ़सोस भी अब तक जो दूर था ....बहुत अच्छी और प्रेरक रचना लिखी है आपने ....गहरे भाव लिए हुए .....एक अच्छा सृजन ....बस कलम के इस सफ़र को जारी रखिये ....खुद को अकेला ना पाओगे ...आज से आपके साथ एक और हमसफर है ......सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारे ....अंत में बस यही कहूँगा ..की आज एक और अपनी पसंद का ब्लॉग मिला

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