02 मई 2010

'ख़ुद से अजनबी '




 लगता कभी है जैसे
  किसी और से सुने हैं
  अक्सर ये लफ्ज़ मेरे
  अपने से नहीं लगते
 तहरीर तो है मेरी
  तजुरबे ख़ुद किये हैं
  ख्याल क्यों न जाने
  अपने से नहीं लगते

बे-सबब बसर बस
किये जा रहा हूँ ऐसे
ज़िन्दगी किसी की
जिये जा रहा हूँ जैसे
ये अक्स तो मेरा है
दिखता जो आइने में
अंदाज़ देखने के
अपने से नहीं लगते

रातों को कभी उठकर
अपने को देखता हूँ
हाथों से धीरे धीरे
ख़ुद को टटोलता हूँ
आँखे हैं ये मेरी
नींदे भी तो मेरी हैं
ये ख्वाब क्यों भला फिर
अपने से नहीं लगते

अक्सर ये लफ्ज़ मेरे
अपने से नहीं लगते |


- योगेश शर्मा

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव।

    हालात से कुछ इस तरह मैं जूझता रहा
    अपने ही घर में अपना पता पूछता रहा

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. bahut sundar sir aapki lekhni me wo kashish hai jo har baar aapke blog pe aane ko majboor karti hai...bas ek suggestion...thoda luk n feel bhi badaliye...padhne me rochakta aayegi...

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  3. बेनामी2/5/10 10:40 pm

    bahut hi khubsurat rachna...
    pehli baar aapke blog ki taraf aaya hoon, lagta hai thodi der ho gayi...
    bahut hi achha likhte hain aap....
    regards..
    http://i555.blogspot.com/
    idhar bhi padharein........

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  4. pahali bar aapke blog par aai hun aur aate hi aapki is khoobsurat rachna ne man moh liya.ek behatreen rachna.
    poonam

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  5. bahut achha hai sharma jee............

    keep it up....

    khud sedoor rahe aurr pata bhee kar liya ....ki vajah kya hai.......

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  6. हालात से कुछ इस तरह मैं जूझता रहा
    अपने ही घर में अपना पता पूछता रहा

    sharma jee isko aise kar den agar thoda sa mane to
    doosre misre me yani sani me

    apne hi dar se apna pata poochta raha

    vajan wahee hai mani bhee wahee hai par sher ki khoobsoorti badhegi ...meri nazar me.....baki aap jaisa chahen.....

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