09 जून 2010

हूँ कवि, लेकिन मुझे भी मोतियों की चाह है




हूँ कवि, लेकिन मुझे भी मोतियों की चाह है
घर में मेरे हों उजाले इसकी भी परवाह है

मैं भी चाहूँ भाग्य मेरे साथ में हर दम रहे
फसलें हँसी की लहलहाए, खुशियों का मौसम रहे

कौन कहता है, कवि हो तो रहे फक्कड़ सदा
कहने को इक घर तो हो, पर रहे घुमक्कड़ सदा

खादी का कुर्ता वो पहने,कंधे पे झोला रहे
टूटी सी ऐनक, गिरेबाँ चाक़ कर घूमा करे

बच्चे रोयें भूख से, पत्नी कलपती ही रहे
दीवार से उतरे पपड़ियाँ, छत टपकती ही रहे

सत्य देखे , सत्य बोले लेकिन ग़म- ए -दुनिया सहे
दाल ग़र न भी मिले,रोटी ही खाकर खुश रहे

क्रांति- शोषण- दुःख- गरीबी मार्ग में बेबस फिरे
प्रेम और श्रृंगार की गलियों में बस भटका करे
अपनी ही दुनिया में खोया, बस अकेला ही जिये
पी के पानी, पेट खाली खांसता ही वो मरे

सर्व शांति सर्व सुख में, मेरा बढ़ा विश्वास है
एक दिन होँगे सुखी सब, ऐसी अटल इक आस है

देख तकलीफे-जहाँ, लब से निकलती आह भी
जान कुदरत के करिश्मे, निकले कलम से वाह भी

दिल धड़कता है तो क्या, संग और भी एहसास हैं
भूख लगती है मुझे भी, और लगती प्यास है

सत्य बांचूं सत्य बाँटूं , सत्य की ही राह है
क्या गलत है साथ में, धन की मुझको चाह है

हूँ कवि, लेकिन मुझे भी मोतियों की चाह है
घर में मेरे हों उजाले इसकी भी परवाह है  |



- योगेश शर्मा

11 टिप्‍पणियां:

  1. आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।

    आचार्य जी

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  2. सत्य बांचूं सत्य बाँटूं , सत्य की ही राह है
    क्या गलत है साथ में, धन की मुझको चाह है


    हूँ कवि, लेकिन मुझे भी मोतियों की चाह है
    हो मेरे घर में उजाले इसकी भी परवाह है |


    बेहतरीन रचना , बहुत खूब !

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  3. sirji kavi naam se jo chitr hamare purkhe man me basa gaye aaj aapki rachna ne use thoda dhoomil kar diya...bahut sundar rachna

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  4. "दिल धड़कता है तो क्या, संग और भी एहसास हैं
    भूख लगती है मुझे भी, और लगती प्यास है"

    वाह!
    बेहतरीन शब्द-चित्र प्रस्तुत किया आपने.....

    कुंवर जी,

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  5. शुक्रिया दिलीप भाई , मेरी भी यादों में ऐसे ही कवि हैं |आप भी मानेंगे कि जिम्मेदारियों से भाग के कविता में मुंह छुपाने और जिम्मेदारियां निभाते हुए कविता में दिल लगाने में फर्क है|वो सब कवि शायद पहली श्रेणी में ही थे हम,आप सभी कर्म करते ,इस तेज़ भागती ज़िंदगी के साथ दौड़ते हैं और इसे पछाड़ने की कोशिश करते हैं |ये मूल सिद्धांतों से हटे बिना और ख़ुद को बेचे बिना भी किया जा सकता है यह मेरा मानना है |

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  6. सुन्दर और प्रभावशाली रचना....कवियों की दुर्दशा पर भी प्रकाश डाला है..

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  7. bhai bahut khoob kaha ..

    umda kaha......

    badhaai !

    poasand********

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  8. सत्य बांचूं सत्य बाँटूं , सत्य की ही राह है
    क्या गलत है साथ में, धन की मुझको चाह है


    -न जी, सही तरीके से भी तो कमाया ही जा सकता है.

    बहुत बढ़िया!!

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  9. सत्य बांचूं सत्य बाँटूं , सत्य की ही राह है
    क्या गलत है साथ में, धन की मुझको चाह है...
    बिलकुल गलत नहीं है यदि सही तरीके से कमाया गया हो क्यूंकि कवि बहुत ही संवेदनशील होते हैं ...धन कमाने का तरीका सही नहीं हुआ तो उसके खुद के ह्रदय पर इतना बोझ होगा की उसका कवित्व ही खो जाएगा ...!!

    कवि को भी पेट तो भरना ही होता है ...व्यवहारिक सोच की अच्छी कविता ..!!

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  10. कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी

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