पंछी तुम क्यों गाते
गीत लिखूँ वियोग बिछोह का
छेड़ रहा हूँ,राग विरह का
इस अवसाद से मुझे छुड़ाने
छेड़ रहा हूँ,राग विरह का
इस अवसाद से मुझे छुड़ाने
बार बार क्यों आते
पंछी तुम क्यों गाते
पंछी तुम क्यों गाते
न सुनना है मुझको कोई
प्यारा मधुर तराना
कोई विचार जो सुख पहुंचाए
नहीं है मुझको लाना
अनुभूति क्यों प्रेम की नाहक
मेरे मन में जगाते
पंछी तुम क्यों गाते
पंछी तुम क्यों गाते
उपवन को तू छोड़ के क्यों
मेरी खिड़की पर आये
छोटे छोटे पर लहरा
गर्दन मटकाता जाए
कितना ही चाहा ना देखूं
कितना ही चाहा ना देखूं
नैना तुम पर जाते
पंछी तुम क्यों गाते
पंछी तुम क्यों गाते
चाहे कितनी आँख है फेरी
ध्यान हटाया जितना
हाथों से कानो को अपने
हाथों से कानो को अपने
बन्द किया है कितना
किन्तु स्वर सन्देश तुम्हारे
किन्तु स्वर सन्देश तुम्हारे
सीधे दिल तक आते
पंछी तुम क्यों गाते
पंछी तुम क्यों गाते
सोचता हूँ क्यों नाहक ही
अब झूठे दर्द को ओढूं
ह्रदय खिला जब उपवन सा
कांटे उसमे क्यों जोडूं
जान गया हूँ रहस्य कि मुझको
जान गया हूँ रहस्य कि मुझको
थे यह बात बताते
पंछी गाते गाते
पंछी गाते गाते
खूबसूरत रचना। साधु्वाद
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar rachna sir...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चित्रों के साथ मन के भावों को बहुत सुन्दर लिखा है...
जवाब देंहटाएंआपके अनेक रंगों में से ...यह एक खूबसूरत कविता का रंग दिल को छू गया....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
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