(पुनः )
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कोई फितरत से आवारा,
कोई तबीयत से आवारा,
किसी को आवारगी का शौक,
मैं मजबूरी में आवारा,
थे वैसे रास्ते बहुत,
न समझा मैं किधर जाऊं,
था केवल मंजिलों का खौफ,
जहाँ जाऊं, जिधर जाऊं,
बचा जब कोइ न चारा,
तो घूमा बन के बंजारा,
किसी को आवारगी का शौक,
मैं, मजबूरी में आवारा,
मेरे भी नज़र के हैं नूर,
मेरा भी दर कहीं पर है,
बिछी पलकें हैं राहों में,
जहाँ पे, घर वहीँ पर है,
किसी का चाँद हूँ और हूँ,
किसी की आँख का तारा,
किसी को आवारगी का शौक,
मैं, मजबूरी में आवारा,
हालांकी हूँ मज़े में खूब
मगर ये लोग कहते हैं,
कभी तकदीर का मारा,
कभी बेचारा कहते हैं,
समझ का फेर है ये सब,
यही जंजाल है सारा,
किसी को आवारगी का शौक,
मैं, मजबूरी में आवारा,
ये आवारापन क्यों कहते हो
बुरा इक रोग होता है?
रमाना मन बहुत पड़ता है,
बढ़ा एक जोग होता है,
बना हूँ जोगी राहों का,
इन्हीं के प्यार का मारा,
किसी को आवारगी का शौक,
मैं, मजबूरी में आवारा,
- योगेश शर्मा
हालांकी, हूँ मज़े में खूब
जवाब देंहटाएंमगर ये लोग कहते हैं,
कभी तकदीर का मारा,
कभी बेचारा कहते हैं,
समझ का फेर है ये सब,
यही जंजाल है सारा,
किसी को आवारगी का शौक,
waah bahut badhiya sir...
सच भी यही है की हर एक व्यक्ति दरअसल मनो-वैज्ञानिक तौर पर आवारा ही होता है ,पर ज्यों ज्यों दिमाग चालाकी से भरता जाता है वो और धीर-गंभीर होने का नाटक करता जाता है ,
जवाब देंहटाएंआवारापन प्रकृति है और सच्चे कवी की पहचान तो आवारा होना ही है
कभी तकदीर का मारा,कभी बेचारा कहते हैं,समझ का फेर है ये सब,यही जंजाल है सारा, किसी को आवारगी का शौक,मैं, मजबूरी में आवारा,
जवाब देंहटाएंये कहता कौन है, आवारापन इक रोग होता है?
खासकर इन पंक्तियों ने रचना को एक अलग ही ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...बहुत सुन्दर..
एक अच्छा सन्देश दिया है इस कविता में।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव भरी रचना……………कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।
जवाब देंहटाएंहालांकी, हूँ मज़े में खूब
जवाब देंहटाएंमगर ये लोग कहते हैं,
कभी तकदीर का मारा,
कभी बेचारा कहते हैं,
समझ का फेर है ये सब,
यही जंजाल है सारा,
किसी को आवारगी का शौक,
शानदार पोस्ट है...
बहुत सुन्दर ...भावों से सजी रचना
जवाब देंहटाएंbhaut khoob
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