वक्त के चलने का सारा खेल है जब ज़िन्दगी ,
कैसे ये हो जाए कि फिर खुशियाँ हों पर गम न हों,
ज्यादा क्या मांगू मैं तुझसे, तूने ख़ुदा सब है दिया
इतना कर एहसान बस ये हौसले कभी कम न हों
उम्र साँसों की बड़े, ये कभी ख्वाहिश न की,
दर्द जितना चाहे दे दे,मुस्कुराहट कम न हों
आंसू तो मनमौजी ठहरें खुशियों में भी बहते हैं,
इतना कर, कि मुश्किलों में आँख मेरी नम न हो
जीत की खुशियाँ, मेरी तकदीर में हों या न हों ,
गलतियों का सोग न हो, हार का मातम न हो
ज्यादा क्या मांगू मैं तुझसे, तूने ख़ुदा सब है दिया
इतना कर एहसान बस ये हौसले कभी कम न हों,
- योगेश शर्मा
सच ही है खुदा ने तो बहुत दिया है फिर भी मन तृप्त नहीं होता....अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंएक सकारात्मक रचना...बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंदर्द चाहे जितना दे दे, मुस्कुराहटें कभी कम न हों....
जवाब देंहटाएंऐसा ही हो ...
@
जीत की खुशियाँ, मेरी तकदीर में अब ना भी हों ,
गलतियों का सोग न हो, हार का मातम न हो
ज्यादा क्या मांगू मैं तुझसे, तूने ख़ुदा सब है दिया
इतना कर एहसान बस, ये हौसले कभी कम न हों,
हौसले बने रहें तो हर मुश्किल आसान होती है ...!!
इस सकारात्मक पोस्ट के लिए आभार ...!!
Acchi Rachna hai Dost
जवाब देंहटाएंsharma ji ye Gazab hai
जवाब देंहटाएंये साँसे तोड़ती हैं दम, दुआ निकले यही लब से,
जवाब देंहटाएंजिस्म का मेरा , हर कतरा, मेरे कातिल के काम आये.
बहुत खूब योगेश साहेब.