ऐसे मौसम थे कभी
दिन पलों में गुज़र जाते थे
चाँद टहलता था छत पे अक्सर
सितारे ज़मीं पे बिखर जाते थे
चलते चलते पांव ख़ुद से
खिंच जाते तेरे घर की तरफ
फिर चुप चाप गली से तेरी
बगैर आहट गुज़र जाते थे
रोज़ नुक्कड़ पर पर भरी धूप
उम्मीद करती थी इंतज़ार
देख कर चेहरा वो मिलती ठंडक
तपते मौसम भी निखर जाते थे
हाथ में लेके हाथों को बस
बैठे रहते थे खामोश यूँही
धडकनें ही बोलती थीं कुछ
और हम, सब समझ जाते थे
ऐसे भी मौसम थे कभी
दिन पलों में गुज़र जाते थे |
- योगेश शर्मा
खूबसूरत इजहार किया है जनाब। बधाई कि आप अपनी पत्नी के साथ ही रहते हैं।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा जी आपने...
जवाब देंहटाएंऐसे मौसम भी थे :)
bahut khoob
जवाब देंहटाएं"aise bhi mausam the"
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
आपने निःशब्द कर दिया....
जवाब देंहटाएंऐसे भी मौसम थे, कभी
जवाब देंहटाएंदिन पलों में गुज़र जाते थे |
बहुत खूब .. और ऐसे भी मौसम आते हैं .. जब पल दिनों से भी बडे हो जाते हैं !!
हाथों में लेके हाथ बस,
जवाब देंहटाएंबैठे रहते, खामोश से,
धडकनें ही बोलती थीं कुछ,
और हम, सब समझ जाते थे
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
हाथों में लेके हाथ बस,
जवाब देंहटाएंबैठे रहते, खामोश से,
धडकनें ही बोलती थीं कुछ,
और हम, सब समझ जाते थे
purane dino me laut gaye.........badhiya prastuti