08 जुलाई 2010

'मैं निर्बल हूँ कितना'



स्वयं को  फिर  मैंने
अपने  से हार  दिया  
मैं  निर्बल हूँ कितना  
अब ये  स्वीकार  किया

विष  को  जाने कबसे, 
कंठ  में  रोका  था
ईश्वर  हो जाने का ,  
हुआ इक धोखा था 
जहर  ये  चुपके  से,
नीचे  उतार  लिया
मैं  निर्बल  हूँ  कितना,
अब ये स्वीकार किया

कितने जन्मों से ये ,
रेंगता था छाती पर
सच का सांप देता  था,
मुझको कितना डर
झूठ  के  नश्तर से
विष-दन्त  उखाड़  दिया
मैं निर्बल हूँ कितना
अब ये स्वीकार किया |



- योगेश शर्मा

6 टिप्‍पणियां:

  1. You have a very good blog that the main thing a lot of interesting and beautiful quote! hope u go for this website to increase visitor.

    जवाब देंहटाएं
  2. स्वयं को फिर से हार दिया ...
    कितना निर्बल हूँ स्वीकार किया ...
    निर्बलता और कमियां स्वीकार करना आत्मावलोकन की प्रक्रिया है ...चलती रहे ...!!

    जवाब देंहटाएं

Comments please