बड़े हसीन गवाह हैं, मेरी यादों के
वो महज़ फूल नहीं हैं, मेरी किताबों के
कोई पन्ना नया, जहां कहीं भी जोड़ा था
वर्क के जैसे, एक फूल रख छोड़ा था
सूख गये लगते पर अन्दर से हरे हैं
कितने हसीन लम्हों की, खुशबू से भरे हैं
कभी आइना बनके दिखाते मेरी झलकी
तस्वीर दिखाएँ कभी माज़ी के हर पल की
निशां हैं ये, सभी अधूरे वादों के
हैं साथी कई तन्हाई भरी रातों के
बड़े हसीन गवाह हैं, मेरी यादों के
वो महज़ फूल नहीं हैं, मेरी किताबों के
- योगेश शर्मा
सूख गये लगते पर अन्दर से हरे हैं
जवाब देंहटाएंकितने हसीन लम्हों की, खुशबू से भरे हैं
बाहर से कुछ भी लगे अन्दर की हरितिमा बरकरार रहनी चाहिये
बहुत सुन्दर रचना
बहुत हसीन गवाह हैं, मेरी यादों के
जवाब देंहटाएंवो महज़ फूल नहीं हैं, मेरी किताबों के
खूबसूरत भाव...बधाई.
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सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत हसीन गवाह हैं, मेरी यादों के
जवाब देंहटाएंवो महज़ फूल नहीं हैं, मेरी किताबों के
मस्त रचना ...बढ़िया अभिव्यक्ति ...धन्यवाद्.
हसीन गवाह ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति लगी ..
जवाब देंहटाएंAti uttam abhivyakti
जवाब देंहटाएंbohut khoobsurat!! loved it :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर!हर किसी के पास ऐसे ही कुछ फूल सूखे हुए किताबों में पड़े होंगे....वक़्त-बे-वक़्त जब न तब उनकी खुशबू महका जाती है हमें....कभी सब के बीच,,कभी तन्हाई में भी...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर!हर किसी के पास ऐसे ही कुछ फूल सूखे हुए किताबों में पड़े होंगे....वक़्त-बे-वक़्त जब न तब उनकी खुशबू महका जाती है हमें....कभी सब के बीच,,कभी तन्हाई में भी...
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