घर से निकले तो नहीं सोचा था किधर जायेंगे
आशियाने ख़ुद बना लेंगे अब जिधर जायेंगे
घाट के पत्थर बनेंगे ग़र किनारों पर रहे
पुल बने तो जाने कितने पार उतर जायेंगे
जिंदगानी के भंवर से मोती निकलते हैं बहुत
सुनते हैं इसमें अगर डूबेंगे तो तर जायेंगे
ख़ार सेहरा में फलेंगे, धूप से लड़ते हुए
पेड़ दरिया के किनारे प्यास से मर जायेंगे
कट गयी है उम्र सराबों के पीछे भागते
थक गए जब पैर तो कहते हैं अब घर जायेंगे |
खूबसूरत कविता..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा...
आभार
खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंघाट के पत्थर बनेंगे ग़र किनारों पर रहे
जवाब देंहटाएंपुल बने, तो जाने कितने पार उतर जायेंगे
वाह...बहुत प्रशंशनीय सोच...आपको सलाम
नीरज