29 दिसंबर 2010

'कविता इक लिख लेता हूँ'




घुमड़ रहा जो भी दिल में,
वो भला कहाँ सब कहता हूँ,
कभी बोलने से उकता जाता,
कभी कहने से डरता हूँ,
कभी शब्द सही न मिल पायें,
कभी मौके कहीं फिसल जाएँ,
तब बातों को मन में बस ,
स्याही सा भर लेता हूँ,
एकांत में इनके छींटों से,
कविता इक लिख लेता हूँ,


कुछ बातो को बोलना मुश्किल,
चेहरे पर भी खोलना मुश्किल,
हो सकता ये चुभ जाएँ,
गहरा कोई घाव ही कर जाएँ,
अपने अंदर पी लेता हूँ,
संग इनके जी लेता हूँ,
दिल जब भी भर आता है,
कागज़ पे झर आता है,
इस बारह मासी सावन में,
जब जी चाहे भीगता हूँ,
ख़ुद ही को दिलासे देता हूँ,
कविता इक लिख लेता हूँ


कुछ सुख, बहुत जो अपने हैं,
कुछ अनबोले से सपने हैं,
कुछ झूठ बड़े जो गहरे हैं
जिन सच पे ढेरो पहरे हैं,
जो कुछ भी बाँट न पाया हूँ,
 कुछ  भ्रम जो छोड़ न पाया हूँ,
हर चीज़ जो देखना चाहता हूँ
हर चीज़ जो मानना चाहता हूँ,
जो कुछ भी करना चाहता हूँ,
जो कुछ भी पाना चाहता हूँ,
पन्नों से कह देता हूँ,
कविता इक लिख लेता हूँ,



- योगेश शर्मा

6 टिप्‍पणियां:

  1. मन के भावों को व्यक्त करने का इससे अच्छा उपाय और कोई नहीं है..कहने में बहुत सी बाते जो कहना चाहते है छुट जाती हैं और जो नहीं कहना चाहते है मुंह से बरबस ही निकल जाती है..किसी ने सही कहा है..हम अपनी कही बातों के गुलाम हैं और न कही बातों के मालिक...फिर मन में जो बातें है वो कहाँ जाएँ????? यही एक बढ़िया उपाय है की मन की स्याही से यादों के पन्नों पर जो जी में आये लिख डालिए और मुक्त हो जाइए..हम सब इस प्रयास में आपके साथ हैं...इस सफ़र में साथ देने के लिए धन्यवाद....

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  2. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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  3. जो कुछ भी करना चाहता हूँ,जो कुछ भी पाना चाहता हूँ,पन्नों से कह देता हूँ,कविता इक लिख लेता हूँ,
    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  4. हो सकता ये चुभ जाएँ,
    गहरा कोई घाव ही कर जाएँ,
    अपने अंदर पी लेता हूँ,
    संग में इनके जी लेता हूँ

    बहुत सही आपने लिखा है ...सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. भावनाओं की उथल पुथल को शब्द मिल जाते हैं तो एक कविता बन जाती है ..
    कविता पर सुन्दर कविता !

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