26 नवंबर 2010

'मैं ख्वाब देखूं कैसे'




सोचा था मैंने तुम यूं
ख़्वाबों में मेरे आओ
ज़रा चांदनी सजाओ
कुछ फूल से खिलाओ
मेरी अंधेरी राह में
दमको चिराग़ जैसे
उजाले से कुछ करो फिर
मुझे रोशनी दिखाओ

 

हाथों में हाथ लेके
बैठो सिरहाने मेरे
कानों में धीमे धीमे 
कुछ  नगमें  गुनगुनाओ 
और कोशिशें अगर हों
कोई बात छेड़ने की
मैं झेंप जाऊं थोड़ा
और तुम  खिलखिलाओ

आँखों से जिस घड़ी में
दिल में उतर गये तुम 
ये सारे सपने मेरे
सोचों में हो गये ग़ुम 
मस्ती चुरा ली तुमने ,
बेफिक्री बीन ली हैं
मैं ख्वाब देखूं कैसे
नींदें ही छीन ली हैं |


3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत एहसास ...एक शेर याद आ गया ...

    वादा किया था कि ख्वाब में आयेंगे
    नींद नहीं आती तो ख्वाब कहाँ से आयेंगे ...

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