चमक जैसे सितारों की
ये बूंदे साथ है मेरे
कमी फिर क्या बहारों की
छलकता जाए है तन से
पसीना ये अनूठा है
है झरना हौसलों का इक
जो लावा बन के फूटा है
कभी पेशानी से हो के
जो गालों पे टपकती है
हज़ारों घुंघरू बज उठे हों
बूंदे यूं छनकती है
मुझे मंजिल है दिखलाता
मुझे मंजिल है दिखलाता
ये जो सूरज चमकता है
कभी ढलता नहीं हरदम
इन आँखों में दमकता है
है चलने से कहाँ फुर्सत
है चलने से कहाँ फुर्सत
कहाँ है वक्त रोने का
बदन का दर्द देता है
मुझे एहसास होने का |
- योगेश शर्मा
बदन का दर्द देता है मुझे एहसास होने का ... वाह क्या बात है बहुत ही अच्छा लिखा आपने सशक्त अभिव्यक्ति... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंकभी पेशानी से हो के
जवाब देंहटाएंये गालों पे टपकती है
हज़ारों घुंघरू बज उठे हों
बूंदे यूं छनकती है ...
ये पसीना ही मिट्टी से सोना भी उगाता है ... बहुत खूब ...ल अजवाब रचना है ...
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमुझे मंजिल है दिखलाता
जवाब देंहटाएंये जो सूरज चमकता है
कभी ढलता नहीं हरदम
इन आँखों में दमकता है
बेहतरीन रचना है...बधाई स्वीकारें
नीरज
चलने से है कब फुर्सत
जवाब देंहटाएंकहाँ है वक्त रोने का
बदन का दर्द देता है
मुझे एहसास होने का |
सुन्दर सहज शब्दों में सहज अभिव्यक्ति....
कुछ उदासी का होकर भी बड़ी गहन चिंतन करती रचना है
जवाब देंहटाएंशब्दों के माध्यम से भावनाओं का उत्कृष्ट चित्रण किया है।
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