सकते में था कुछ देर,
हैरां नहीं हूँ अब
हैरां नहीं हूँ अब
तुम गये तो लगा,
सब कुछ उजड़ गया
सब कुछ उजड़ गया
तमन्नाएँ पालने का
जज़्बा ही मर गया
जज़्बा ही मर गया
कुछ दिन न हुआ होश
मुझे सुबह शाम का
मुझे सुबह शाम का
न किसी के वास्ते रहा
न अपने काम का
न अपने काम का
गुजरते वक़्त ने लेकिन
बदल दिया है सब
बदल दिया है सब
खाली थी ज़िन्दगी मगर
वीरां नहीं हूँ अब
वीरां नहीं हूँ अब
तुम्हें खबर तो होगी,
परेशां नहीं हूँ अब
यूं तो ज़िंदगी से
ज्यादा न पाया था
परेशां नहीं हूँ अब
यूं तो ज़िंदगी से
ज्यादा न पाया था
हर हसीन लम्हे को
पल में गंवाया था
पल में गंवाया था
हमारे अफ़साने में कुछ
दास्ताँ सी बात है
दास्ताँ सी बात है
दिल के सेहरा में हरे
दरख़्त सी इक याद है
दरख़्त सी इक याद है
साये में जिसके हंस के ,
गुज़ारूंगा उम्र अब
गुज़ारूंगा उम्र अब
यादों को कहीं कोई,
छीन पाया भला कब
छीन पाया भला कब
तुम्हें खबर तो होगी,
परेशां नहीं हूँ अब
सकते में था कुछ देर,
हैरां नहीं हूँ अब
परेशां नहीं हूँ अब
सकते में था कुछ देर,
हैरां नहीं हूँ अब
interesting....
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंvery good...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता...
soft and strong..
hamen bhi khabar hai aaj propose day hai...padhkar maja aa gaya kasam se
जवाब देंहटाएंखाली थी ज़िन्दगी मगर
जवाब देंहटाएंवीरां नहीं हूँ अब
तुम्हें खबर तो होगी,
परेशां नहीं हूँ अब
bas itna hi kafi hai.....
ये जज़्बा काबिल-ए-तारीफ है...
जवाब देंहटाएंखाली थी ज़िन्दगी मगर
जवाब देंहटाएंवीरां नहीं हूँ अब....खूब।
वाह क्या बात है बहुत खूब लिखा है आपने! शायद गुज़रता हुआ वक्त ही हर मर्ज की दवा होता है जख्मों के निशान तो सदा ही रहा करते हैं मगर हाले दिल यूं ही ब्यान होता है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अनुपम भाव संयोजन...
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