अलसाती ओस कहे फूल को सरगोशी से,
" दोस्त विदाई दो, अब मुझको जाना है,
मेरी इस काया को भाप बन उड़ना है,
फिर इन हवाओं के पंखों पे झूलूँगी
फिर इन हवाओं के पंखों पे झूलूँगी
लिपटे लिपटे इनसे नभ शिखरों को छू लूंगी
छोटा सा कण बन किसी बादल से जुड़ना है
पवन पवन देश देश, मुझको तो फिरना है,
जाती हूँ, पर इक दिन फिर वापस आऊंगी
जाती हूँ, पर इक दिन फिर वापस आऊंगी
धरती के गालों पे झूम के झर जाऊंगी
सतत क्रम यूं ही तो सदियों से चलता है
बीज पेड़ हो कर फिर बीज बनके उगता है
वैसे ही नया रूप लिए धरती पर छाना है
वैसे ही नया रूप लिए धरती पर छाना है
किसी और प्यासे की प्यास को बुझाना है
काम कितने करने हैं, काम कितने आना है
करदो तुम दोस्त विदा, अब मुझको जाना है" |
- योगेश शर्मा
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंओस का कहा..भला लगा...
शुभकामनाएँ.
Sunder Bimb , Sunder Panktiyan
जवाब देंहटाएंकाम कितने करने हैं, काम कितने आना है
जवाब देंहटाएंकरदो तुम दोस्त विदा, अब मुझको जाना है" |
अनुपम भाव संयोजन ।
बहुत ही भावनात्मक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबधाई.