सितारों के आगे जहाँ है किधर
कोई तो कहो आस्मां है किधर
यहाँ इंसान देखे ज़माना है गुजरा
क्यों परेशान हो खुदा है
किधर
सच देखती थी सही बोलती थी
कहाँ है वो आँखें, जुबां है
किधर
सहर रात से रास्ता पूछती है
सहर रात से रास्ता पूछती है
पूछूं मैं किसको, है मंजिल
किधर
पसीने में सब बह चुकीं हैं लकीरें
नसीबों का जाने निशाँ है किधर
छोटी सी रोटी दिखा देना उसको
कोई पूछे ग़र दास्ताँ है किधर
सितारों के आगे जहाँ है किधर
कोई तो कहो आस्मां है किधर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंSUNDAER
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...भावाभिव्यक्ति अद्भुत है...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसच देखती थी सही बोलती थी
जवाब देंहटाएंकहाँ है वो आँखें, जुबां है किधर...
बेहतरीन ग़ज़ल...बहुत खूब...वाह-वाह...
ati sunder rachna
जवाब देंहटाएंanju