मेरे ख़ामोश दिल में जाने ये आवाज़ कैसी है
ज़ेहन के बंद दरवाज़े पे दस्तक तेरे जैसी है
दरारों से ख्यालों में है कबसे झांकता कोई
पुकारा है मग़र क्यों सामने आता नहीं कोई
कोई अहसास है जिसकी झलक कुछ तेरे जैसी है
हवाएं बेवजह रह रह मुझे हैरान करती हैं
परेशां हूँ बहुत वो और परेशान करती हैं
सरगोशी मेरे कानों में उनकी तेरे जैसी है
मेरे ही साथ उगती और मेरे ही साथ ढलती हैं
चलता हूँ तो कुछ नज़रें भी मेरे साथ चलती है
मेरी राहों की अब परछाइयां भी तेरे जैसी हैं
मेरी हालत पे अब तो आइना भी खूब हंसता है
चिढ़ाता है कभी थोड़ा, कभी फ़ब्ती ये कसता है
कि चेहरा है मेरा पर शक्ल इकदम तेरे जैसी है
मैं इतना अजनबी सा जाने फिर क्यों पेश आता हूँ
न कोई वास्ता तुझसे हमेशा यूं दिखाता हूँ
करूं क्या मेरी फ़ितरत भी बहुत कुछ तेरे जैसी है
मेरे ख़ामोश दिल में ये आवाज़ कैसी है
ज़ेहन के बंद दरवाज़े पे दस्तक तेरे जैसी है
- योगेश शर्मा
अनुपम भाव सनयोजन से सजी खूबसूरत भावभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत नज़्म ....
जवाब देंहटाएंमेरे ही साथ उगती हैं मेरे ही साथ ढलती हैं
जो चलता हूँ तो कुछ नज़रें भी मेरे साथ चलती है
मेरी राहों की अब परछाइयां भी तेरे जैसी हैं
लाजवाब...
अनु