कल की रात कोई आया था
मुट्ठी में तोहफ़ा लाया था
चेहरे पर कुछ फूल खिले थे
चेहरे पर कुछ फूल खिले थे
चाँद चमकता था माथे पे
साँसों में खुशबू संदल सी
आँख में तारे भर लाया था
कल की रात कोई आया था
वो मेरे सिरहाने खड़ा था
और मैं आँखें मूँद पड़ा था
और मैं आँखें मूँद पड़ा था
उसकी नज़रों की ठंडक को
अपनी पलकों पर पाया था
कल की रात कोई आया था
ये सोचा कुछ बोल के देखूं
ये सोचा कुछ बोल के देखूं
उसकी हथेली खोल के देखूं
चाहा लेकिन आँख खुली ना
एक नशा सा कुछ छाया था
कल की रात कोई आया था
चाहा लेकिन आँख खुली ना
एक नशा सा कुछ छाया था
कल की रात कोई आया था
उसने मेरी नींद टटोली
फिर धीरे से मुट्ठी खोली
मेरे सीने पर रख कर कुछ
मेरा माथा सहलाया था
फिर धीरे से मुट्ठी खोली
मेरे सीने पर रख कर कुछ
मेरा माथा सहलाया था
कल की रात कोई आया था
आँखें खोली कोई नहीं था
आइना बस इक रखा था
उसमें देखा, अक्स में लेकिन
बच्चा एक नज़र आया था
अरसे बाद मैं मुस्काया था
अरसे बाद मैं मुस्काया था
कल की रात कोई आया था
मुझको वापस ले आया था
कल की रात कोई आया था ....
अन्दर का बच्चा अक्सर सपनों में मिलने आ जाता है...सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंकोमल भाव, सुन्दर रचना!
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