ज़मीं को सजदा करो आसमां मिल जाएगा
ख़ुद को ढूंढोगे अगर शायद ख़ुदा मिल जाएगा
हाथ चाहे छूट जाएँ राहें गुम हों जाए सब
दौर- ऐ-गर्दिश में मगर अपना पता मिल जाएगा
बैठे बैठे बस दिखेंगे रेत के उड़ते निशाँ
चलते क़दमों को कहीं तो कारवां मिल जाएगा
कोशिशें करते हो इतनी घर दिलों में करने की
दिल में अपने झाँक लो सारा जहां मिल जाएगा
ये उफनती मौज ,तूफ़ा और अंधियारा घना
इन में से ही कोई हमको नाख़ुदा* मिल जाएगा
* ( नाखुदा - मल्लाह )
- योगेश शर्मा
बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंखुबसूरत ग़ज़ल...
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जवाब देंहटाएंज़मीं को सजदा करो आसमां मिल जाएगा
ख़ुद को ढूंढोगे अगर शायद ख़ुदा मिल जाएगा !
कोशिशें करते हो क्यों लोगों के दिल में बसने की
दिल में अपने झाँक लो सारा जहां मिल जाएगा !
सही कहा...
"मो को कहाँ ढूंढें रे बंदे...."
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 18-10 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
मलाला तुम इतनी मासूम लगीं मुझे कि तुम्हारे भीतर बुद्ध दिखते हैं ....। .
ज़मीं को सजदा करो आसमां मिल जाएगा
जवाब देंहटाएंख़ुद को ढूंढोगे अगर शायद ख़ुदा मिल जाएगा
हाथ चाहे छुट जाएँ राहें गुम हों जाए सब
दौर- ऐ-गर्दिश में मगर अपना पता मिल जाएगा
बहुत बढ़िया ग़ज़ल
बढ़िया!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ......
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर गज़ल....
लाजवाब शेर.
अनु