बर्फ के सीने में तपिश ढूंढ ही लेंगे
चलती हुयी धड़कन हैं दिल ढूँढ ही लेंगे
मिट्टी की महक अपनी साँसों में बसाई है
परदेस में भी अपना वतन ढूँढ ही लेंगे
हसरत के सफ़ीने* को तूफ़ाँ में उतारा है
नाकाम दुआओं में असर ढूँढ ही लेंगे
तन्हाई की बस्ती है खामोश हैं बाशिंदे
नज़रों में कहीं उनके बयां ढूँढ ही लेंगे
छलनी हुए पैरों ने कुछ सँग* बटोरें हैं
उनमें से कोई अपना ख़ुदा ढूँढ ही लेंगे
चलती हुयी धड़कन हैं दिल ढूँढ ही लेंगे
*सँग - पत्थर , सफ़ीने -जहाज़
- योगेश शर्मा
वाह जनाब।
जवाब देंहटाएंक्या नायाब चीज़ है भाई ये तो।
बिल्कुल सूफियाना अंदाज है।