कुछ तीर चले होंगे कुछ संग* सहे होंगे
कुछ लफ्ज़ डरे होंगे पर्दों से निकलने में
नज़रों से रह रह कर ज़ाहिर तो हुए होंगे
सीने के तूफाँ को मुट्ठी में कसा होगा
सैलाब ने माथे पर कुछ हर्फ़ जड़े होंगे
समझाया बहुत होगा हालात ने ज़ेहन को
और साथ में होने तक थोड़ा तो लड़े होंगे
मुश्किल हुआ होगा यूं और जो चुप रहना
होंठों ने दिल को ही अफ़साने कहे होंगे
छोटा सा दिलासा तब ख़ुद को दिया होगा
छोटा सा दिलासा तब ख़ुद को दिया होगा
कि ज़ख्म जो बंजर थे अब फिर से हरे होंगे
कुछ तंज सुने होंगे कुछ रंज बहे होंगे..............
*हर्फ़ - लिखावट, संग - पत्थर
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