एक शाम बैठा था अपने घर में
खोया ख़यालों के सफ़र में
चराग़ मध्धम सा जल रहा था
चाँद उग कर संभल रहा था
तमन्नायें चुप चुप मचल रही थीं
हवाएं हौले से चल रही थी
तभी अचानक हुआ था ऐसे
छू लिया हो किसी ने जैसे
फ़िर दूर से इक पयाम आया
कुछ आहटों का सलाम आया
आहटों संग शक्ल तो नहीं थी
साथ लेकिन आवाज़ एक थी
आवाज़ में अनोख़ी कशिश थी
थोड़ी हंसी थोड़ी ख़लिश थी
और साथ में था नाम मेरा
थोड़ी हंसी थोड़ी ख़लिश थी
और साथ में था नाम मेरा
लगा रात में घुल गया सवेरा
मुझको यूं कोई बुला रहा था
कि ख़ुद को रोका न जा रहा था
खिंचकर *सदा से उठ पड़ा मैं
कि ख़ुद को रोका न जा रहा था
खिंचकर *सदा से उठ पड़ा मैं
अपने घर से निकल पड़ा मैं
आहटों का पोर पकड़े
ज़रा सा खिंचता ज़रा सा चलते
अँधेरी सुनसान गलियों से होकर
अनजान अनदेखे से रास्तों पर
आवाज़ की तरफ जा रहा था
दुनिया से ऊपर उठा जा रहा था
संदल की ख़ुश्बू सी छाई हुयी थी
चांदनी गहरायी हुयी थी
कदम इतनी खामोशी से बढ़ रहे थे
धड़कन के नश्तर से गढ़ रहे थे
डर था वो आवाज़ खो न जाए
अंधेरो में बस गुम हो न जाए
कदम इतनी खामोशी से बढ़ रहे थे
धड़कन के नश्तर से गढ़ रहे थे
डर था वो आवाज़ खो न जाए
अंधेरो में बस गुम हो न जाए
जाने कब यूँही चलते चलते
रुक गया एक सोच से ठिठक के
कबसे मैं ऐसे ही चल रहा हूँ
एक ठंडी अगन में जल रहा हूँ
ये रास्ता जा रहा जहाँ पर
है सुकून या ग़म है वहाँ पर
है राहतें, मरहम, मोहब्बत
या फ़िर सुलग़ता मातम वहाँ पर
वीरानियों से न जवाब आया
सवाल पे मैं ख़ुद ही शरमाया
कुछ होश संभला कुछ रहा बहका
बेसाख़्ता पलट कर पीछे देखा
रौशनी घर की टिमटिमा रही थी
कोई आवाज़ उधर से भी आ रही थी
एक धुँधली शक्ल हाथ लहरा रही थी
और इशारे से शायद बता रही थी
" तेरे अंधेरों में बन सवेरा
इधर कोई करता है इंतज़ार तेरा
तू क्यों परेशां की राहें कहाँ पर
जो ढूंढे तुझे है वो मंज़िल यहां पर"
एक शाम बैठा था अपने घर में
डूबा ख़यालों की रहगुज़र में
एक शाम .....
*सदा---आवाज़
*सदा---आवाज़
- योगेश शर्मा
अदभुत।। लाजवाब।। बहुत खूब।।
जवाब देंहटाएं" तेरे अंधेरों में बन सवेरा
जवाब देंहटाएंइधर कोई करता है इंतज़ार तेरा
तू क्यों परेशां की राहें कहाँ पर
जो ढूंढे तुझे है वो मंज़िल यहां पर",,, बहुत सुंदर रचना है,