ज़िन्दगी इतने सवालों की बरसात न कर
हंसी आने लगी और कोई बात न कर
तूने यूं भी दिखाए हैं दिन में तारे
ग़ुज़ारिश है कोई और करामात न कर
उजाले दिन के हमें बंद कमरों से दिखे
चाँद छुपता फिरे ऐसी कोई रात न कर
चार दीवारी में ही उम्र बसर हो जाये
वक़्त बेबस अब वोही हालात न कर
मुद्दतों बाद अपनों से गले लग के मिले
दूर से हाथ हिलाएं वो लम्हात न कर
सिवा अपने ज़माने में न कुछ आये नज़र
इतने पथ्थर फिर सबके जज़्बात न कर
अपनी मासूम हंसी से किनारा कर लूँ
इतने संजीदा कभी मेरे ख़यालात न कर
ज़िन्दगी इतने सवालों की बरसात न कर
- योगेश शर्मा
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