30 नवंबर 2021

फिर? कब? क्यों ?





ज़िन्दगी इतने सवालों की बरसात न कर
हंसी आने लगी और कोई बात न कर

तूने यूं भी दिखाए हैं दिन में तारे
ग़ुज़ारिश है कोई और करामात न कर

उजाले दिन के हमें बंद कमरों से दिखे
चाँद छुपता फिरे ऐसी कोई रात न कर

चार दीवारी में ही उम्र बसर हो जाये
वक़्त बेबस अब वोही हालात न कर

मुद्दतों बाद अपनों से गले लग के मिले 
दूर से हाथ हिलाएं वो लम्हात न कर

सिवा अपने ज़माने में न कुछ आये नज़र
इतने पथ्थर फिर सबके जज़्बात न कर

अपनी मासूम हंसी से किनारा कर लूँ
इतने संजीदा कभी मेरे ख़यालात न कर

ज़िन्दगी इतने सवालों की बरसात न कर



- योगेश शर्मा 

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