आसमां से इक सितारा मेरी छत पर
देखता रहता है मेरी ओर अक्सर
देखता रहता है मेरी ओर अक्सर
दूर से तकता हूँ बस चुपचाप उसको
वो झिलमिला के दे कई पैग़ाम मुझ को
वो झिलमिला के दे कई पैग़ाम मुझ को
बादलों में ग़ुम कभी हो जाए जब
आसमां की छानता हूँ सारे राहें
जम सी जाती हैं घटाओं पर निगाहें
चिलमन हटा कर जब कभी बाहर वो आये
उसकी चमक चेहरे पे मेरे जगमगाये
आसमां से इक सितारा मेरी छत पर
देखता रहता है मेरी ओर अक्सर ।
चिलमन हटा कर जब कभी बाहर वो आये
उसकी चमक चेहरे पे मेरे जगमगाये
सिलसिला कबसे न जाने चल रहा है
एक दीपक हसरतों का जल रहा है
एक दीपक हसरतों का जल रहा है
छूने उसे यूं हाथ तो अक्सर बढ़ाये
पर सितारे भी कभी क्या हाथ आये
पर सितारे भी कभी क्या हाथ आये
डर रहा हूँ साथ न छूटे हमारा
ख्वाब सा ग़ुम हो न जाए वो सितारा
ख्वाब सा ग़ुम हो न जाए वो सितारा
थोड़ा डर और हसरतें पलकों में भर कर
फिर पहुँच जाता हूँ मैं हर रात छत पर
फिर पहुँच जाता हूँ मैं हर रात छत पर
आसमां से इक सितारा मेरी छत पर
देखता रहता है मेरी ओर अक्सर ।
- योगेश शर्मा
शब्दों का प्रयोग असरदार है. खूबसूरत, उम्दा गजल बनी है.
जवाब देंहटाएं