हवा से ज़्यादा अपने से लड़ना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है
बुझाने मुझको कबसे हवाएं चल रही हैं
रौशनी में लेकिन उम्मीदें पल रही हैं
संभालने को उनको संभलना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है
सुलग सुलग के बरसों समेटा हुआ सभी
धुआँ भरा है मुंह में बांटा नहीं कभी
ज़हर पहले ख़ुद ये निगलना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है
हवा को ये भरम उसमें ज़ोर है बहुत
और वक्त इस दिए का कमज़ोर है बहुत
सोच उसकी अब तो बदलना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है
कुछ देर इस नश्तर को ढाल बनना होगा
मदमस्त थपेड़ों का हर वार सहना होगा
सांचे में नए फिर से ढलना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है
हवा से ज़्यादा अपने से लड़ना ज़रूरी है
मैं आख़री चिराग़ हूँ जलना ज़रूरी है।
- योगेश शर्मा
जलना ज़रूरी है ..... बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंभावप्रवण रचना ।
धन्यवाद् संगीता जी , आभार
जवाब देंहटाएंBahut hi badhiya. Nidhish , ye chingari to jalti Rahni chahiye
जवाब देंहटाएंDhanyawad Nidhish babu. Aabhar
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