06 जून 2022

'कुछ भी गलत नहीं'

 


कुछ भी गलत नहीं
कुछ भी सही नहीं
बातें वही हैं सच
जो हमने कही नहीं

लम्हों की हर हक़ीक़त
पलों की कहानियां
शोर करते किस्से
चुप सी निशानियां
कुछ दिल में छिप न पायीं
कुछ आँखों से बही नहीं

कुछ भी गलत नहीं
कुछ भी सही नहीं

चुपके से जो छुपा ली
माथे की सिलवटें
होंठों में जो दबा ली
वो मुस्कुराहटें
 न हों सकी किसी की
और अपनी रही नहीं

कुछ भी गलत नहीं
कुछ भी सही नहीं

ख़ामोश हैं नज़ारे
वादियां भी गुमसुम
दम तोड़ते से लगते
ये सांस लेते मौसम
आयी ख़िज़ा थी मिलने
वापस गयी नहीं

कुछ भी गलत नहीं
कुछ भी सही नहीं
बातें वही हैं सच
जो हमने कही नहीं। 


*ख़िज़ा - पतझड़ 


- योगेश शर्मा 

2 टिप्‍पणियां:

  1. राजीव श्रीवास्तव10/6/22 8:20 am

    योगेश भाई आपकी कविताएं दिल को छू कर बहुत सवाल करती है। बहुत ही प्यारी रचना। सदा ऐसे ही लिखते रहिए 👍

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  2. धन्यवाद् राजीव भाई हौसला अफ़ज़ाई के लिए

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