15 जून 2025

'भीड़ में जीते रहे'

 

भीड़ में जीते रहे
और अकेले मर गए
न ग़लत थे न सही
बस सफर तय कर गए

ज़िन्दगी भी शोर-ओ-ग़ुल का
कैसा अजब बाज़ार है
हर कोई चिल्ला रहा
बस शोर का व्यापार है
मिलती ख़ामोशी है आख़िर
एक वही लेकर गए

न ग़लत थे न सही
बस सफर तय कर गए


- योगेश शर्मा 

1 टिप्पणी:

  1. बड़ी मुश्किल है , बस सफर तय कर गए और जीना तो कभी जाना ही न

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