सौ झूठ गढ़े जीने के लिए
और सच उनको ही मान लिया
हर लम्हा कुछ मारा ख़ुद को
फिर उसको जीना मान लिया
ख़्वाहिश ख़्वाब तमन्ना ज़िद
कुछ पता नहीं क्या पाया है
अब इस वक़्त के जंगल में
अपने को खोया मान लिया
नाकाम रहे समझने में
दुनिया और दुनियादारी को
थक के तनहा बैठे जब
अपने को थोड़ा जान लिया
मंज़िल पर पहुँच के ये जाना
मंज़िल कोई एक नहीं होती
क्यों चलने में रस्तों का फिर
बेकार में ही एहसान लिया
सौ झूठ गढ़े जीने के लिए
और सच उनको ही मान लिया
- योगेश शर्मा
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