चिराग ले कर के ढूंढता था
जिसे खोजता था बस्तियों में
सेहरा, समंदर, जंगलों में
अपनी बेगानी हस्तियों में
वो बस रहा था मेरी नज़र में
मेरे ख़यालों के हर सफर में
अँधेरी रातों में नूर बन के
चमक रहा था रहगुज़र में
मेरी तमन्नाओं की गली में
मेरी मुरादों के अंजुमन में
वो गुल थी जिसकी तलाश मुझको
खिला हुआ था मेरे चमन में
दिखे हज़ारों ही बेल बूटे
वही फूल लेकिन नज़र न आया
निगाहें ना -कामयाब थीं जहां पर
दिल ने वहां काम कर दिखाया
मिला नज़ारों में नहीं जो
दिल की नज़र ने वो दिखाया
साथ में मासूमियत से
राज़ एक गहरा बताया
'रिश्ते दिखते नहीं महसूस किये जाते हैं
ज़िन्दगी में लम्हें ही जिए जाते हैं '
इन्ही लम्हों से जवाब मिलता है
और इंसां क्या ख़ुदा भी मिलता है
फिर न बाकी तलाश कोई रही
न कुछ पाना बाकी रहा बस्तियों में
उसी नूर की रौशनी में समाया
बहा जा रहा हूँ अजब मस्तियों में
- योगेश शर्मा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Comments please