27 अगस्त 2025

"जिसे खोजता था''


जिसे खोजता था बड़ी मुद्दतों से

कभी ढूंढता था जिसे बस्तियों में

सेहरा, समंदर, वादियों में

पहचानी अनजानी हस्तियों में


वो यूं तो था मेरी नज़र में

मेरे ख़यालों के हर सफर में

अँधेरी रातों का बन के तारा

चमकता भी था रहगुज़र में


मेरी तमन्नाओं की गली में

मेरी मुरादों के अंजुमन में

तलाश जिस फूल की मुझे थी

खिला था कबसे मेरे चमन में


 हर एक शै में झलक रहा था

मगर मुझे वो नज़र न आया

थका निगाहों से ढूंढ कर जब

तो मैंने दिल को आज़माया


निगाहें ढूंढ पायीं जिसे न

दिल ने वो चेहरा दिखाया

और फिर मासूमियत से

राज़ एक गहरा बताया


'रिश्ते बस महसूस किये जाते हैं

इनको पाने में लम्हें जिए जाते हैं

लम्हों से हर जवाब मिलता है

इंसान क्या ख़ुदा भी मिलता है'


- योगेश शर्मा

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