असर हो तेरी मदहोशी पे मेरे होश खोने का ,
तो न होगा कोई शिकवा मुझे फिर लड़खड़ाने का
वजह लाख मिलती हैं तड़पने और शिकायत की
बहाना एक नहीं मिलता, ज़रा सा मुस्कुराने का
समझ जाओ जो तुम जीवन नहीं बस जीतना सब से ,
तो कोई रंज ना होगा, मुझे फिर मात खाने का
कोई बाद भी इसके, अगर दिल तक पहुँच पाए,
न होगा रंज फिर कोई, खुली किताब बनने का
अगर बाज़ार से थोड़ा बहुत, प्यार मिल जाए,
गिला होगा न फिर कोई, न कुछ अफ़सोस बिकने का
लगे हैं ज़ख्म दिल पर और जेहन पे चोट है गहरी,
है आगाज़ बहुत अच्छा, ज़माने को समझने का,
इक बार मेरे साथ, अगर तुम हंस सको खुल के,
सिला मिल जायगा मुझको, अपने ग़म छुपाने का
- योगेश शर्मा
बढ़िया बहुत अच्छी
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंअपने ग़म छुपाने का.............
जवाब देंहटाएंwow
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shekhar kumawat