31 मार्च 2010

"एक घर"





 

मैंने शायरी का घर बनाया है,
लफ्ज़ की ईंटों को लगाया है,
 
 
वक्त की रेत इकठ्ठा करके,
आँख की झील से नमी लेके,
पलों के टुकड़ो को चुन चुन के,   
याद के गारे में मिलाया है,

स्याह रातों को, रंगीन सुबहों को,
दिल की गहराई में कैद लम्हों को,
बीते काटे तमाम सालों को,
देखे अनदेखे सारे सपनों को,
सबको रंगों में मिलाया है,
इनसे दीवारों को सजाया है,
 
मैंने शायरी का घर बनाया है,


दिल को दरवाज़े की जगह जोड़ा है,
अन्दर, आईना रख छोड़ा है,
कभी इसको देखने जो आओगे,
कहीं अपनी झलक भी पाओगे,
जिन पलों को छिपाया कभी ख़ुद से,
नुमाईश में उनको भी लगाया है,
मैंने शायरी का घर बनाया है,


मैंने शायरी का घर बनाया है,


- योगेश शर्मा

5 टिप्‍पणियां:

  1. नुमाईश में उनको भी लगाया है,
    मैंने शायरी का घर बनाया है,
    ख्वाबो खयालो का यह घर आबाद रहे
    खूबसूरत एहसास

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  2. वाह क्या कहने बहुत खूबसूरत रचना

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  3. क्या एहसास

    मैंने शायरी का घर बनाया है,
    SHEKHAR KUMAWAT

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  4. हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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