रेत की मानिंद, पलों में,
हाथ से फिसलते हैं,
सुबह के उगे रिश्ते,
कभी पलों में अजनबी,
दिल में बसा लेते हैं घर
कभी ख़ुद के साये से भी
लोग बच के चलते हैं,
फायदे नुक्सान का,
चश्मा, पहन कर देख लो,
समझ लोगे रिश्तों के
क्यों मायने बदलते हैं |
- योगेश शर्मा
हाथ से फिसलते हैं,
सुबह के उगे रिश्ते,
शाम होते ढलते हैं,
संग मरने की दुआ,
कहने की सब बातें हैं ये,
कहाँ साथ दम निकलते हैं,कभी पलों में अजनबी,
दिल में बसा लेते हैं घर
कभी ख़ुद के साये से भी
लोग बच के चलते हैं,
फायदे नुक्सान का,
चश्मा, पहन कर देख लो,
समझ लोगे रिश्तों के
क्यों मायने बदलते हैं |
- योगेश शर्मा
"कहने की बातें हैं सब,
जवाब देंहटाएंकहाँ साथ दम निकलते हैं
...
फायदे नुक्सान का,
चश्मा, पहन कर देख लो,
समझ जाओगे, रिश्तों के,
क्यों मायने बदलते हैं|"
बहुत खूब - प्रशंसनीय प्रस्तुति - आभार
राकेश जी, हौसला अफज़ाई का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
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