इतना गुमसुम हो गया था,
जैसे के बेहोश हूँ,
खामोशियाँ भी पूछती थीं,
इतना क्यों खामोश हूँ,
कर रहा था साफ़ बस,
मन की सारी मैल को,
मशगूल भूलने में था,
हर इक पुराने बैर को
नाग ढेरों बरसों से,
दिल में थे पाले हुए,
रंज के बेताल कितने,
ख़ुद पे थे डाले हुए,
भूत ये करते थे पीछा,
दिन रात सोते जागते,
जिंदगी बरबाद कर ली,
इनसे बचते भागते,
जिंदगी से, जालों को
अब साफ़ मैंने कर दिया,
साथ सबके ख़ुद को भी,
अब माफ़ मैंने कर दिया |
- योगेश शर्मा
उम्दा कविता ...........
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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जवाब देंहटाएंहर मानव में दोष है करते गलती काम।
जवाब देंहटाएंखुद को माफी मिल गयी सुमन करे विश्राम।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
bahut khub
जवाब देंहटाएंshandar kavita
achha vichar he aap ka
नाग ढेरों बरसों से,
जवाब देंहटाएंदिल में थे पाले हुए,
रंज के बेताल कितने,
ख़ुद पे थे डाले हुए,
ye panktiya sara sach keh gayi....aapki rachnaon ki prashansha ke liye habd hi nahi bachte...
अच्छी विचारणीय प्रस्तुती,अंतरात्मा की गहराइयों के पास से !!!!!
जवाब देंहटाएंयह कविता आपकी .... दिल को छू गई....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया...दिल को छू लेने वाली रचना...
जवाब देंहटाएंसच कहूँ दोस्त तो मैं आपकी कविता का शीर्षक पढकर आपके ब्लॉग पर नहीं पहुंचा बल्कि आपकी फोटो देखकर पहुंचा हूँ...मुझे ऐसा लगा जैसे हम कुम्भ के मेले में बिछुडे हुए भाई हों जैसे ..काफी हद तक एक-दूसरे से मिलते जुलते नैन-नक्श देखकर मैं तो चौंक ही गया था... उम्मीद है कि मुझे देखकर)फोटो)आपको भी कुछ-कुछ ऐसी ही अनुभूति होगी :-)