दूर पर ज़मीं जहाँ
आस्मां से मिलती है
जिस जगह खुशियाँ सभी
क्यारियों में खिलती है
कदम कदम पे इन्द्रधनुष
रौशनी लुटाते हैं
हर तरफ बस मुस्कुराते
चेहरे ही नज़र आते हैं
काश एक ही दिन को
मैं भी वहां जा पाता
उस रौशनी की बारिश में
मैं भी गर नहा पाता
जो अग़र ना जा पाता
हाथ ही बढ़ा सकता
खींच कर वहां से कुछ
रोटियां ही ला सकता
थोड़ी ख़ुद को दे देता
थोड़ी किसी अपने को
और पूरा कर लेता
एक वक्त के सपने को
खा के रोटियाँ फिर इक
जाम पानी का पीता
आँखें अपनी बन्द कर के
गीत कोई गुनगुनाता
यूं ही गाते गाते बस
कुछ पलों में सो जाता
और उसी दुनिया के
सपनों में फ़िर खो जाता|
- योगेश शर्मा
बहुत सुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन कविता... ऐसा लगा मानो एक पल के लिए हम भी विचारों के सागर में गोते लगा आए...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
pavitr soch se saji masoom kavita.
जवाब देंहटाएंaaj mann udaas thaa.....baar-baar padha aapki kavita ko....mann ko sukoon mil gaya.
जवाब देंहटाएंSundar rachna
"थोड़ी,
जवाब देंहटाएंख़ुद को दे देता,
थोड़ी,
किसी अपने को,
और पूरा कर लेता,
एक वक्त के सपने को,"
शब्द और भाव प्रशंसनीय - यही सोच बनी रहे - शुभकामनाएं
nahtrin
जवाब देंहटाएंbahut badhai
shekhar kumawat
उस रौशनी की बारिश से रोटियां ही ला पाता ...
जवाब देंहटाएंऔर पूरा कर लेता एक वक़्त के सपने को ...
अपने साथ दूसरों के सुख के लिए भी सोचना ...जीना इसी का नाम है ...!!