'आवारगी की कैद'
मैं चल रहा हूँ कबसे
मजे में साथ अपने
नये रास्ते बनाता
नये देखता हूँ सपने
आवारगी ने मुझको
है कैद किया जबसे
तबसे हूँ उड़ता पंछी
आज़ाद हूँ मैं तबसे
जाना मुझे किधर है
कब मुझको सोचना था
मंजिल को फ़िक्र होगी
उसे मुझ तक पहुंचना था |
- योगेश शर्मा
मस्त.. आबरा मैं भी होना चाहता हुं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता है जी। धन्यवाद स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंbahut badiya , janaab
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता !
जवाब देंहटाएंवाह ! ........... बहुत ही खूबसूरत
जवाब देंहटाएंati sundar
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता
जवाब देंहटाएंBahut Khub
जवाब देंहटाएंhttp://amrendra-shukla.blogspot.com/
जाना मुझे किधर है
जवाब देंहटाएंकब मुझको सोचना था
मंजिल को फ़िक्र होगी
उसे मुझ तक पहुंचना था |
bahut pasand aaya.
"मंजिल को फ़िक्र होगी
जवाब देंहटाएंउसे मुझ तक पहुंचना था"
निराली सोच - बहुत सुंदर
atyant sunder
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