न सही गलत का हमदम कोई फैसला कर
साँस में भर ले मुझे और छोड़ता चल
मैं था एक ख़याल यही सोचता चल
बना के बोझ मुझको न यादों में ढोना
न पाने को मुझको नींदे ही खोना
खुली आँख का हूँ एक ख्वाब देखता चल
मैं था एक ख़याल यही सोचता चल
बेकार क्यों बनाना माज़ी का मुझे हिस्सा
है आज ही हकीकत वो कल सिर्फ किस्सा
राह - ऐ- दिल के सारे नक्श पोंछता चल
मैं था एक ख़याल यही सोचता चल
यकीं रास्तों पे रख नज़र मंजिलों पर
भर आँख में सितारे, सूरज को ज़मीं कर
कहीं तोड़ ले कुछ कहीं जोड़ता चल
मैं था एक ख़याल यही सोचता चल
मैं था एक ख़याल यही सोचता चल..............
"मैं हूँ बस ख़याल
जवाब देंहटाएंमुझे सोचता जा...."
भावपूर्ण रचना ...
Kya baat hai.....bahut khoob!!
जवाब देंहटाएंयोगेश जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई
Kya baat hai.....bahut khoob!!
जवाब देंहटाएंमैं हूँ एक ख़याल...बेहतरीन प्रस्तुति,बधाई...
जवाब देंहटाएंये शीर्षक अपने आप में कुछ रहा है-बहुत कुछ...