23 सितंबर 2011

'हम अगर दोस्त ही रहते'


 अपनी परवाज़ में 
रिश्तों की हदें क्यों बांधी 
मस्तियों में ही उड़ते तो अच्छा होता 
नए नामों से 
क्यों खुद को पुकारा हमने 
हम अगर दोस्त ही रहते तो अच्छा होता 

झील के ठहरे हुए मंज़र में 
बस कहानी है 
और किनारों की 
ख़ामोश निगहबानी है 
शोख़ दरिया सा ही बहते तो अच्छा होता  
हम अगर दोस्त ही रहते तो अच्छा होता 


न रंज कोई न उम्मीद,
न होते अरमान
दिल के आले में रखने से
हुआ ये गुमान
सिर्फ आँखों में बसे रहते तो अच्छा होता 

हम अगर दोस्त ही रहते, तो अच्छा होता
हम अगर दोस्त ही रहते, तो अच्छा होता



- योगेश शर्मा

8 टिप्‍पणियां:

  1. न रंज कोई, न उम्मीद ,न होते अरमान दिल के आईने में रखने से, हुआ ये गुमान सिर्फ आँखों में बसे रहते, तो अच्छा होता
    हम अगर दोस्त ही रहते, तो अच्छा होता वाह !! बहुत खूब....
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  2. हम अगर दोस्त ही रहते, तो अच्छा होता....
    सही कहा आपने...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. हम अगर दोस्त ही रहते, तो अच्छा होताहम अगर दोस्त ही रहते, तो अच्छा होता...

    .........एक स्नेही दिल से निकली इन लाइनों ने बहुत प्रभावित किया !

    जवाब देंहटाएं
  5. दोस्त को दोस्त ही रहने दो कोई नाम न दो।

    जवाब देंहटाएं
  6. न रंज कोई, न उम्मीद ,
    न होते अरमान
    दिल के आले में रखने से
    हुआ ये गुमान
    सिर्फ आँखों में बसे रहते, तो अच्छा होता.

    बहुत सुंदर भावपूर्ण पेशकश. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  7. अपनी परवाज़ में
    रिश्तों की हदें क्यों बांधी
    मस्तियों में ही अगर उड़ते, तो अच्छा होता
    नए नामों से
    क्यों खुद को पुकारा हमने
    हम अगर दोस्त ही रहते, तो अच्छा होता
    ekdam gazab ka likha hai.......

    जवाब देंहटाएं

Comments please