ये चेहरों पे परतें, ये परतों में चेहरे
हर चेहरा है ओढ़े हुए कितने चेहरे
दरारों को अपनी छुपाते छुपाते
मुखौटे ही ये बन गए अपने चेहरे
नज़र है मगर पलकें भींच रखीं
ज़ुबानों पे ताले से डाले हुए हैं
करें शक़ मासूम मुस्कुराहटों पर
दिमागों में डर कितने पाले हुए हैं
खुद पे हज़ारों लगाए हैं पहरे
ये चेहरों पे परतें, ये परतों में चेहरे
धड़कता है दिल सिर्फ अपने लिए ही
खुद से ही बस प्यार हम कर रहे हैं
न चीखों की परवाह ना आहों की फिक्रें
मगर इन्सां होने का दम भर रहे हैं
हैं मन से अपाहिज और गूंगे- बहरे
ये चेहरों पे परतें, ये परतों में चेहरे
नज़र में ज़हर, सांप सीनों में पाले
ज़हर का ही व्योपार आता है हमको
बिना रीड़ के खोखले जिस्म हैं बस
लाश अपनी उठाना ही भाता है हमको
किसी को सहारे न देने को ठहरें
ये चेहरों पे परतें, ये परतों में चेहरे
न रुक कर ही सोचा, न खुद में ही झांका
यूं हैं क्यों?, हैं कबसे? पता कुछ नहीं है
मगर ऐसी फितरत ज़माने को कोसें
कहें 'क्यों उसे परवाह कुछ नहीं है '
ख़ुद को मिले जब कभी दर्द गहरे
ये चेहरों पे परतें, ये परतों में चेहरे
हर चेहरा है ओढ़े हुए कितने चेहरे |
- योगेश शर्मा
swarthi insan ki fitrat ko shabd de diye. sateek rachna.
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंBEHTARIIN PRASTUTI...BADHAI SWIIKAREN
जवाब देंहटाएंचेहरों के पीछे की सच्चाई को उजागर करने के कोशिश. बहुत शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंचेहरों के असली चेहरे ...बहुत बढ़िया रचना ...
जवाब देंहटाएंये चेहरों पे परतें, ये परतों में चेहरे
जवाब देंहटाएंहर चेहरा है ओढ़े हुए कितने चेहरे |
चेहरे पे चेहरे....
इंसान....!!
योगेश जी, नमस्कार्। सुन्दर रचना ।ए चेहरो पे परतें--
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