सीने से जो लगाया वो वक्त जा रहा है
जिंदगी से रिस कर ये लख्त* जा रहा है
कुछ शक्लें रोज़ मेरा चेहरा टटोलती हैं
जुबां तो बंद हैं, पर नज़रें बोलती हैं
आँखों से कह रही हैं कि वक्त जा रहा है
सीने से जो लगाया वो वक्त जा रहा है
ऐसा नहीं है मैंने कोई कसर है छोड़ी
मिन्नत से बाँधा उसको, कसमों से गाँठ जोड़ी
ठुकरा के मुझको लेकिन कमबख्त जा रहा है
सीने से जो लगाया वो वक्त जा रहा है
कभी इसकी शाख पे गुंचे थे बेशुमार
बहारें भी टूट कर, करतीं थीं जिस से प्यार
कट कर चमन से वोही दरख़्त जा रहा है
सीने से जो लगाया वो वक्त जा रहा है
बहलाया कह ख़ुद को, कहाँ उसे भूलना है
मिलने के वास्ते बस, यादें टटोलना है
वो भी तो दिल को करके सख्त जा रहा है
सीने से जो लगाया वो वक्त जा रहा है
मैं भी ये जानता हूँ कि वक्त जा रहा है
सीने से जो लगाया वो वक्त जा रहा है।
लख्त* - टुकड़ा
- योगेश शर्मा
.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति दामिनी की मूक शहादत
जवाब देंहटाएंआप भी जाने @ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .
बहुत खूब....
जवाब देंहटाएंशख्स हो या वक़्त .....विरह के दुःख कि अपनी अपनी सीमा होती है ....सुन्दर अभिव्यक्ति ...!!
जवाब देंहटाएंAti sundar
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