मेरे जहाँ की
हद से कुछ
दूर
एक छोटा सा जहां और
भी है
मेरे मकां से
आगे कुछ दूर
मिलते जुलते से मकां और भी
हैं
वो दिखते तो हैं
करीब मगर
पहुंचना उन तक
बहुत मुश्किल है
एक खाई है
दिलों की गहरी
गुज़रना जिस से
बहुत मुश्किल है
तह को पाना
उसकी नामुमकिन
भरा है कितनी आँखों का पानी
जलती ख़बरों, कभी सुलगते
किस्सों में
कभी विरासत में मिली
यह कहानी
ज़ात
के दस्ताने ओढ़ इंसां
ने
यकीं कुचले और रिश्ते
काटे
बस्तिया फूंकी,घरों को
रौंद दिया
ज़मीं पे खींची
हदें, हवा के
हिस्से बांटे
जन्मों पहले चली गोलियां
थीं जो
उनके छर्रे बीन रहे हम
अब तक
नस्लें पैदा हई हैं ज़ख्म साथ लिए
चोट गहरी थी
कुछ इस हद
तक
इतनी गहरी कि
इतने बरसों में
इसकी आदत सी पड़ गयी
हम को
जब कभी ज़ख्म भरने
जो लगे
नोच लेते हैं हम ख़ुद
उन को
अब भी कुछ हाथ
मिलना चाहें
कहीं कुछ होंठ
दे रहे आवाज़
हर तरफ कैंचीयों
का जंगल है
फिर भी कुछ
पंख भर रहे
परवाज़
नहीं हैं मेरी
उम्मीदें तनहा
मेरे
जैसे परेशां और
भी हैं
मेरी बाहों की पहुँच
से आगे
कैद मुट्ठी में आसमाँ
और भी है
मेरे जहाँ की
हद से कुछ
दूर
एक छोटा सा जहां और
भी है
मेरे मकां से
आगे कुछ दूर
मिलते जुलते से मकां और भी
हैं ।
मेरे जहाँ की हद से कुछ दूर
जवाब देंहटाएंएक छोटा सा जहां और भी है
मेरे मकां से आगे कुछ दूर
मिलते जुलते से मकां और भी हैं ।
सुंदर ह्रदय से निकले उदगार. खूबसूरत प्रस्तुति.
जन्मों पहले चली गोलियां वो थीं
जवाब देंहटाएंजिनके छर्रे हम बीन रहे हैं अब तक
- very evocative and heart rending.