अँधियारा पिंजरे में घुप है
आज भी मन का पंछी चुप है
फ़ैले हैं यादों के दाने
वो भी चुगे नहीं, क्यों जाने
शक्लें ,बातें वक्त के साए
कोई भी न आये जाये
न तो पिछला न ही अगला
कुछ भी याद करे न पगला
पंख समेटे हुये पड़ा है
जाने कब से नहीं उड़ा है
बादल, मौसम, रंग, नज़ारे
चाहे वो कितना भी पुकारें
न कोइ आवाज़ सुने अब
मतलब खो बैठे जैसे सब
बादल, मौसम, रंग, नज़ारे
चाहे वो कितना भी पुकारें
न कोइ आवाज़ सुने अब
मतलब खो बैठे जैसे सब
झुका है सर और बंद है आँखें
ताकि इन मे कोई न झांके
दर्द की स्याही दिख जायेगी
चेहरे पर कुछ लिख जायेगी
वो किस्से जो याद रहे ना
छोड़ के लेकिन कहीं गये ना
लुकते छुपते रहा था जिनसे
हो जायें न रौशन फिर से
इसी लिए अँधियारा घुप है
आज भी मन का पंछी चुप है
Bahut sundar
जवाब देंहटाएंएक ऐसे मनोभाव को उजागर किया आपने जो हर व्यक्ति कभी कभी न महसूसता है ...सुन्दर..बहुत सुन्दर..!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..!!!
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