यादों का उड़ता एक पंछी
बीज गिरा कर चला गय़ा
काँटों की बस्ती में नन्हा
फूल खिला कर चला गया
बरसों तक मैंने हर उगती
हरियाली को कुचला था
मन में जगती हर चाहत को
चुन चुन कर के मसला था
भर कर चोंच में बादल
बंजर को नहला कर चला गया
यादों का उड़ता एक पंछी
यादों का उड़ता एक पंछी
बीज गिरा कर चला गय़ा
सींच रहा था रेत से इसको
सींच रहा था रेत से इसको
सेहराओं का माली था
सन्नाटे बस गूंजते थे
दिल धड़कन से खाली था
बंद पड़े सूखे होंठों पर
गीत उगा कर चला गया
यादों का उड़ता एक पंछी
यादों का उड़ता एक पंछी
बीज गिरा कर चला गय़ा
देख रहा हूँ खुली हवा में
देख रहा हूँ खुली हवा में
फूल को अब लहराते हुए
उसके ऊपर सतरंगी इक
तितली को मंडलाते हुए
कितने सोते ख़्वाबों का
माथा सहला कर चला गया
यादों का उड़ता एक पंछी
बीज गिरा कर चला गय़ा
काँटों की बस्ती में नन्हा
फूल खिला कर चला गया
यादों का उड़ता एक पंछी....
- योगेश शर्मा काँटों की बस्ती में नन्हा
फूल खिला कर चला गया
यादों का उड़ता एक पंछी....
सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएं.बहुत उत्कृष्ट रचना...
जवाब देंहटाएंBahut sundar...
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